जेब पर भारी ये महँगाई
आज निकला था बाजार चलो कुछ घुमा-फिरी हो जाए
मूंगफली के ठेले वाले से बोला भाई सौ ग्राम
मूंगफली तो दो
बोला दस रुपये, जेब में हाथ डाला निकले
पांच रूपए कुल
पांच रूपये कुल यार समय ये क्या बन आया
महँगाई ही इतनी है यार बचा इतना ही पाया
महँगाई इतनी है ना पूछो हाल
तंग है जेब ढीली है चाल
सोचा एक सेब खा लू बोला सेब वाले को एक सेब
बोला पन्द्रह रूपये का एक सेब
जेब में हाथ डाला, निकले पांच रूपये कुल यार
पांच रूपये कुल यार समये ये क्या बन आया
महँगाई ही इतनी हे यार बचा इतना ही पाया
इससे तो अच्छा था हाल
जब हम थे बाल
पिता की जेब पर था हमारा हाल
जेब में हाथ डाला करते थे
चार आने निकला करते थे
उस में हम सेब भी खाया करते थे
और मूंगफली भी चबाया करते थे
और पैसे भी बच जाया करते थे
जेब में पैसा ले जाया करते थे
भर-भर थैला ले आया करते थे
और आज है ये हाल
कहने को तो हम जेंटल मैन,
पर खाली जेब मटकाते नैन
इस महँगाई का ना पूछो हाल
इससे से तो अच्छी थी अपनी धन्नो की चाल
चलती थी बढती थी दिखती थी
मगर इस महँगाई का ना पूछो हाल
इसकी ना चाल दिखती हे ना ढाल दिखती है
ये महँगाई हे, ये पर लगा कर उड़ती
है
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